छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री और देशभर की क्षेत्रीय भाषाओं के कलाकारों के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि है।
72वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (National Film Awards) के लिए नियमों में किए गए इस संशोधन ने एक नया अध्याय खोला है — अब केवल भारत की आठवीं अनुसूची (Eighth Schedule) में दर्ज भाषाएँ ही नहीं, बल्कि अन्य क्षेत्रीय बोलियों में बनी फिल्में भी राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए पात्र होंगी।
नीचे इस पूरे घटनाक्रम का विस्तृत विवरण दिया गया है 👇
🎬 72वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में ऐतिहासिक बदलाव: अब छत्तीसगढ़ी सहित क्षेत्रीय बोलियों की फिल्मों को मिलेगा सम्मान
📍 पृष्ठभूमि
अब तक भारत के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों (National Film Awards) में केवल उन्हीं भाषाओं में बनी फिल्मों को शामिल किया जाता था जो भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज हैं।
इस सूची में हिंदी, मराठी, तमिल, तेलुगु, बंगाली, गुजराती, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, उर्दू आदि 22 भाषाएँ आती हैं।
लेकिन भारत में इन भाषाओं के अलावा सैकड़ों क्षेत्रीय बोलियाँ और लोकभाषाएँ हैं — जैसे छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, मगही, बघेली, गोंडी, हरियाणवी, राजस्थानी, कश्मीरी पहाड़ी, कोकबोरोक, खासी, बोडो आदि।
इन भाषाओं में भी हर साल अनेक फिल्में बनती हैं, लेकिन इन्हें राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं मिल पाती थी।

📝 अब क्या बदला है?
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (Ministry of Information & Broadcasting) ने 72वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के लिए नियमों में संशोधन किया है।
नए प्रावधान के अनुसार:
“भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल न होने वाली क्षेत्रीय बोलियों में बनी फिल्मों को भी राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में शामिल किया जाएगा।”
लेकिन इसके लिए एक शर्त रखी गई है —
👉 फिल्म निर्माता को राज्य के गृह सचिव या संबंधित जिला कलेक्टर से एक प्रमाण पत्र (letter of recognition) लेना होगा, जिसमें यह बताया जाए कि:
“यह बोली राज्य के एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में व्यापक रूप से बोली और समझी जाती है।”
इस तरह सरकार ने पहली बार भाषाई विविधता और सांस्कृतिक समृद्धि को राष्ट्रीय मंच पर स्वीकार किया है।

🎥 छत्तीसगढ़ी सिनेमा को मिला ऐतिहासिक अवसर
यह संशोधन विशेष रूप से छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री के लिए मील का पत्थर साबित होगा।
अब छत्तीसगढ़ी में बनी फिल्मों को भी राष्ट्रीय स्तर पर “Best Feature Film in Regional Language” जैसी श्रेणियों में नामांकन मिलेगा।
राज्य के फिल्म निर्माता और अभिनेता लंबे समय से इस मान्यता की मांग कर रहे थे।
यह बदलाव अब उन्हें न केवल राष्ट्रीय पहचान, बल्कि आर्थिक और सामाजिक प्रोत्साहन भी देगा।
👤 अखिलेश पांडेय — बदलाव के सूत्रधार
छत्तीसगढ़ी कलाकार अखिलेश पांडेय इस ऐतिहासिक परिवर्तन के पीछे प्रमुख प्रेरक रहे हैं।
उन्होंने बताया कि —
“जब मेरी फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार में स्थान नहीं मिला, तब मुझे गहरा दुख हुआ। लेकिन मैंने ठान लिया कि इस असमानता को दूर करूँगा।”
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, और सूचना एवं प्रसारण मंत्री को पत्र लिखकर यह विषय उठाया।
अपने पत्र में उन्होंने बताया कि उनकी छत्तीसगढ़ी फिल्म ने:
- 63 अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते,
- और गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज हुई।
इसके बावजूद, केवल “आठवीं अनुसूची में शामिल न होने” के कारण उसे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से वंचित कर दिया गया था।
उनकी इस शिकायत पर प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने संज्ञान लिया और मामला सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (I&B Ministry) को भेजा।
इसके बाद ही मंत्रालय ने नियमों में संशोधन किया — और यह बदलाव अब पूरे देश की क्षेत्रीय सिनेमा इंडस्ट्री के लिए वरदान साबित हुआ।
🇮🇳 भारत की क्षेत्रीय भाषाओं के लिए नई पहचान
यह संशोधन सिर्फ छत्तीसगढ़ तक सीमित नहीं है —
बल्कि अब देशभर में बोली जाने वाली भाषाएँ जैसे:
भोजपुरी, मगही, बघेली, अवधी, राजस्थानी, हरियाणवी, गोंडी, कोकबोरोक, नागपुरी, पहाड़ी, डोगरी, खासी, बुंदेली आदि में बनने वाली फिल्मों को भी राष्ट्रीय पुरस्कार की दौड़ में शामिल किया जाएगा।
इससे:
- स्थानीय कलाकारों को राष्ट्रीय मंच मिलेगा,
- फिल्म निर्माण को प्रोत्साहन मिलेगा,
- और भारत की भाषाई विविधता का बेहतर प्रतिनिधित्व राष्ट्रीय सिनेमा में दिखेगा।
🎖️ सांस्कृतिक दृष्टि से महत्व
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों का उद्देश्य हमेशा भारतीय संस्कृति की विविधता को सम्मान देना रहा है।
लेकिन यह पहली बार है जब सरकार ने यह स्वीकार किया है कि भाषा की सूची से परे भी भारत की असली पहचान “लोकबोली” में बसती है।
इस बदलाव से छत्तीसगढ़ी जैसी बोलियों को वह सांस्कृतिक मान्यता मिलेगी जिसकी वे लंबे समय से हकदार थीं।
🗣️ अखिलेश पांडेय का बयान
“मैंने यह लड़ाई सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि भारत के हर उस कलाकार के लिए लड़ी है जो अपनी मातृभाषा में सिनेमा बनाता है।
अब भारत की हर बोली को सम्मान मिलेगा — यह सच्चे अर्थों में ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की दिशा में कदम है।”
✨ निष्कर्ष
यह बदलाव भारतीय सिनेमा के लोकतंत्रीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है।
अब छत्तीसगढ़ी सिनेमा को वह राष्ट्रीय मंच और पहचान मिलेगी, जो उसे लंबे समय से नहीं मिल पा रही थी।
यह निर्णय आने वाले वर्षों में न केवल राज्य की फिल्म इंडस्ट्री को पुनर्जीवित करेगा, बल्कि भारत की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को सिनेमा के माध्यम से विश्व पटल पर प्रदर्शित करने का मार्ग भी प्रशस्त करेगा।
