छत्तीसगढ़ में कांग्रेस द्वारा ED (प्रवर्तन निदेशालय) के खिलाफ की गई आर्थिक नाकेबंदी पर राज्य के उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कांग्रेस के इस आंदोलन को “पूरी तरह फ्लॉप शो” करार देते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ की जनता अब कांग्रेस और भूपेश बघेल की असलियत जान चुकी है।

यहाँ विस्तार से जानिए डिप्टी सीएम अरुण साव का पूरा बयान और उसके निहितार्थ:
🔴 मुख्य बातें अरुण साव के बयान की:
🗣️ 1. आर्थिक नाकेबंदी पूरी तरह असफल रही
- अरुण साव ने कहा कि कांग्रेस ने जो “छत्तीसगढ़ बंद” या “नाकेबंदी” का आह्वान किया था, उसे जनता ने समर्थन नहीं दिया।
- उन्होंने दावा किया कि सभी बाजार, दुकानें और सार्वजनिक सेवाएं सामान्य रूप से चालू रहीं।
- इसका मतलब है कि जनता ने इस “राजनीतिक ड्रामे” को नकार दिया।
🗣️ 2. भूपेश बघेल को जनता ने पहले ही दिखाया आईना
- डिप्टी सीएम ने याद दिलाया कि विधानसभा चुनाव 2023 में ही छत्तीसगढ़ की जनता ने भूपेश बघेल और कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया था।
- उन्होंने कहा: “जनता ने पहले ही बता दिया था कि वह भ्रष्टाचार और घोटालों की राजनीति को बर्दाश्त नहीं करेगी। अब कांग्रेस उसी नाकामी को छिपाने की कोशिश कर रही है।”
🗣️ 3. भ्रष्टाचार के आरोपी को बचाने का प्रयास
- अरुण साव ने सीधे तौर पर कहा कि कांग्रेस भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल, जो शराब घोटाले में आरोपी हैं, को राजनीतिक ढाल बनाकर बचाना चाहती है।
- उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस लोकतांत्रिक संस्थाओं और कानून के रास्ते में बाधा डाल रही है।
🗣️ 4. कांग्रेस को आत्मचिंतन की जरूरत
- डिप्टी सीएम ने कहा कि इस तरह की सड़कों पर उतरने की नौटंकी से कुछ नहीं होने वाला।
- कांग्रेस को अपने पिछले शासनकाल के कार्यों का मूल्यांकन करना चाहिए कि कैसे घोटालों, कमीशनखोरी और तानाशाही रवैये ने उसे जनता से दूर कर दिया।
🔍 राजनीतिक विश्लेषण:
पक्ष | रुख |
---|---|
भाजपा सरकार | कांग्रेस सिर्फ भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए आंदोलन कर रही है। जनता अब उनके झांसे में नहीं आएगी। |
कांग्रेस पार्टी | यह ईडी की कार्रवाई राजनीतिक प्रतिशोध है, और हम लोकतंत्र और विपक्ष की आवाज बचाने के लिए आंदोलनरत हैं। |
📌 पृष्ठभूमि: क्या है आर्थिक नाकेबंदी?
- कांग्रेस ने 22 जुलाई को राज्यभर में “आर्थिक नाकेबंदी” का ऐलान किया था।
- उनका कहना था कि ED की “राजनीतिक प्रेरित” कार्रवाई और भाजपा सरकार की “तानाशाही” के खिलाफ यह विरोध होगा।
- लेकिन ज़मीनी स्तर पर कई व्यापारिक संगठनों और चेंबर ऑफ कॉमर्स ने इसका सपोर्ट नहीं किया, जिससे यह आंदोलन कमजोर पड़ गया।