हेल्थ l दिल्ली-एनसीआर में ब्लैक अस्थमा के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। आइए जानते हैं क्या है यह बीमारी और क्यों बढ़ रही है इतनी तेजी से।वायु प्रदूषण के साथ-साथ ठंड की मौसम की मार झेल रहे दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में ब्लैक अस्थमा के मामलों में बढ़ोतरी देखी जा रही है। बता दें कि, ठंड के मौसम में होनेवाली सांस से जुड़ी बीमारियों में ब्लैक अस्थमा या काला दमा भी एक बीमारी है। इसे डॉक्टरी भाषा में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज या सीओपीडी (COPD) कहा जाता है। प्रदूषण और खराब एयर क्वालिटी की वजह से काले दमा के मरीजों की समस्याएं बढ़ जाती हैं और उन्हें कई तरह की कॉम्प्लिकेशन्स से भी गुजरना पड़ता है।दिल्ली-एनसीआर समेत उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में वायु प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ा है और इसी वजह से रेस्परेटरी सिस्टम से जुड़ी बीमारियां भी बढ़ रही हैं। इस बीच सीओपीडी (COPD) या ब्लैक अस्थमा के मामलों में काफी इजाफा देखा गया है। अगर ब्लैक अस्थमा बहुत गम्भीर हो जाए तो यह बीमारी जानलेवा भी बन सकती है।
ब्लैक अस्थमा या सीओपीडी फेफड़ों से जुड़ी एक बीमारी है जो धीरे-धीरे लंग्स को कमजोर करती है। यह धीरे-धीरे गम्भीर होती है और क्रोनिक डिजिज का रूप ले लेती है। सर्दियों के मौसम में तापमान कम होने की वजह से सीओपीडी के मामले बढ़ सकते हैं। आमतौर पर ब्लैक अस्थमा उन लोगों में होता है जो स्मोकिंग करते हैं या ऐसी जगहों पर रहते हैं जहां हवा में प्रदूषण का स्तर अधिक होता है। धुआं, धूल-मिट्टी और प्रदूषण के कण धीरे-धीरे सांस की नली और फेफड़ों में जमा होने लगती हैं और धीरे-धीरे ये सीओपीडी का कारण बन जाते हैं।
भारत समेत दुनियाभर में सीओपीडी के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। पहले सीओपीडी के 80% मामले ऐसे लोगों में पाए जाते थे जिनमें स्मोकिंग की आदत होती है। वहीं, अब बीते कुछ वर्षों से यह सीओपीडी के मामले उन लोगों में अधिक पाए जाते हैं जो बिल्कुल धूम्रपान नहीं करते।