देवभोग तहसील के सेनमुड़ा में आदिवासी सहदेव गोंड की जमीन में 1987 में अलेक्जेंडर होने का पता चला तो मैनपुर तहसील के पायलीखंड निवासी भूंजिया बरनू नेताम के खेत में हीरा होने की जानकारी 1992 में लगी. अविभाजित मध्यप्रदेश सरकार की माइनिंग कॉरपोरेशन दोनों खदानों में पूर्वेक्षण के नाम पर जम कर दोहन भी किया. आज इन रत्नों की चमक विदेशों तक पहुंच गई पर जमीन के मालिक आज भी कच्चे मकान में रहते हैं. मुआवजे की आस में पीढ़ियां गुजर रही पर राजस्व रिकार्ड में खदान का जिक्र तक नहीं हो सका.
दो साल पहले जब जमीन में चढ़े दादा और पिता के नाम का फौत कटवा कर नया पट्टा बनाने गया तो कूल 12 एकड़ जमीन में लगभग दो एकड़ जमीन की कमी आ गई.खदान वाली जमीन अब बरनू के वारिसों के नाम नहीं रहा. उत्तराधिकारी पोता नयन सिंह ने बताया कि दादा बरनू की मौत के बाद उनकी सारी जमीन पिता जयराम, चाचा कुवर सिंह और संतोष के नाम थी, लेकिन अब ये तीनों गुजर गए तो उनकी कूल साढ़े 12 एकड़ जमीन का मुखिया नयन सिंग हुआ. अन्य चचेरे भाईयों के नाम हिस्सेदारों में दर्ज है.
नयन ने कहा कि साल भर पहले फौती कटकर जब पट्टा बनाया तो उसमें अचानक दो एकड़ रकबे की कमी आई. पट्टा में खसरा 252 के बजाए 252/1 दिखाया. शंका होने पर जानकारों से पूछने के बाद पता चला की रकबा 252 को दो भागों में बांट दिया गया है. दादा बरनू के नाम की जमीन गांव के सरपंच रहे बहुर सिंह को बंटवारा में दिया जाना उल्लेख मिला. खसरा नंबर 252 का हीरा धारित रकबे में शामिल जमीन 252/2 हो गया, जो जांगड़ा के सरपंच रहे बहुर सिंह के नाम 2002 दर्ज हो गया. बहुर के निधन के बाद 2019 में जमीन बहुर सिंह के संतानों के नाम अंकित है.
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